मनुष्य और उसके द्वारा निर्मित समाज तथा राष्ट्र के संबंधों को समझने में जहां साहित्य की भूमिका अहम होती है वहीं इस भूमिका में आत्मकथाओं का योगदान सबसे गंभीर और गुढ़ होता है | अन्य विधाओं में समझने की यह बात पात्रों के विचारों एवं उसके संबंधों के माध्यम से होती है वहीं आत्मकथाओं में यह काम स्वयं के संघर्षों की अनुभूति से उत्पन्न ज्ञान होता है | एक लेखक रचनात्मक जीवन संघर्ष के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र के बीच अपने आप को जिस रूप में पाता है , उसी को वह व्यक्त करता है इन जटिल संबंधों की पड़ताल करने में आत्मकथाओं में अभिव्यक्त संघर्ष और समाज -सांस्कृतिक संबंधों का ताना-बाना न केवल एक दस्तावेज़ की तरह होता है बल्कि उसमें समाज और राष्ट्र के विकास की एक दृष्टि भी होती है | दलित आत्मकथाएं न केवल एक व्यक्ति की बल्कि पूरे दलित समाज की चिंता, चिंतन और संघर्षों के अन्वेषण की दस्तावेज है, जो समाज अस्तित्व में तो था लेकिन ब्राह्मणवादी व्यवस्था और उसके द्वारा निर्मित इतिहास में खो गया या ब्रह्मणवादियों के द्वारा उसे खत्म कर दिया गया था | पीड़ाजनित उन्वेषण की यह प्रक्रिया सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है बल्कि वह आत्मकथाकार का समाज और राष्ट्र की अवस्थाओं के बीच जीवन संघर्षों के साथ-साथ उनके सामाजिक संबंधों का भी प्रतिफलन है |दलित आत्मकथाएं नहीं संघर्षों और संबंधों की गाथा है | दलित आत्मकथाएं समाज और राष्ट्र की विकास गाथा को ऊपर से नहीं नीचे से देखने की समाजशास्त्रीय दृष्टि पैदा करती है और वैज्ञानिक दृष्टि से एक समृद्ध तथा विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ने के लिए वैकल्पिक दृष्टि का निर्माण करती है | यह वैकल्पिक दृष्टि फुले - अंबेडकरवादी सामाजिक चिंतन एवं दर्शन पर आधारित है |
रामचंद्र दलित साहित्य के युवा अध्येता| 1 अगस्त 1970 को उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के पूर नामक गांव में जन्म | जे.एन.यू., नई दिल्ली से 'प्रेमचंद्र की कहानियों में दलित' विषय पर एम. फिल तथा 'प्रेमचंद्र का कथा साहित्य और दलित विमर्श' विषय पर पीएच.डी. | दलित विमर्श, दलित साहित्य आंदोलन और दलित साहित्य आलोचना पर विचारपरक लेख, शोध-पत्र और कहानी प्रकाशित | भोजपुरी में भी रचना कर्म | दलित साहित्य एवं संस्कृति कर्मी | दलित साहित्य मंच , दिल्ली के भूतपूर्व महासचिव | प्रकाशित पुस्तकें : ओमप्रकाश वाल्मीकि की प्रतिनिधि कविताएं, दलित साहित्य की विकास-यात्रा , दलित चेतना की कविताएं (स), प्रेमचंद विषयक कहानियां : संवेदना और सरोकार, दलित साहित्य : आशय, आंदोलन और अवधारणा | सदस्य : पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति ,एनसीईआरटी , नई दिल्ली (2005-06); कार्यकारिणी सदस्य उ. प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ (2011-12) संप्रति : भारतीय भाषा केंद्र, जे.एन.यू., नई दिल्ली के अध्यापन |
प्रवीण कुमार जन्म : 5 फरवरी 1984, महेशपुरा, झंझारपुर, मधुबनी, बिहार के एक साधारण किसान परिवार में हुआ | शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा का गांव और दरभंगा में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से एम.ए. (हिंदी), ओमप्रकाश वाल्मीकि की आलोचना दृष्टि : 'दलित साहित्य और सौंदर्यशास्त्र' एक आलोचनात्मक अध्ययन (संदर्भ : कथा साहित्य और आत्मकथा ) विषय पर पीएच.डी | प्रकाशित रचनाएं : सौंदर्यशास्त्र और दलित दृष्टि, दलित जीवन : संघर्ष और स्वपन (सं.) हिंदी दलित साहित्य का सौंदर्यबोध : चिंतन और प्रक्रिया, दलित चेतना की कविताएं, (सं.) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध -पत्र आलेख, कविताएं और अन्य रचनाकर्म प्रकाशित | संप्रति : हिंदी विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (मध्य प्रदेश ) |