मध्यकाल में साहित्य के केंद्र में सिंगार रस था, लेकिन जीवन में नहीं था | पूंजीवाद ने सिंगार को अमीरों या दरबारी संस्कृति से बाहर निकाल कर मास कल्चर का अंग बनाया जन उपभोग की चीज बनाया रेनेसां में स्त्री शरीर के सवाल आलोचना और सामाजिक आंदोलन के केंद्र में आते हैं | मध्यकालीन कविता में औरत का शरीर केंद्र में था जबकि रेनेसा में गद्य साहित्य और व्यापार के केंद्र में स्त्री का शरीर है औरत को घर की चारदीवारी से बाहर निकाला गया औरत के विकास और संघर्ष की नई संभावनाओं का जन्म हुआ दिलचस्प है सिंगार औरत करती है लेकिन वह कैसे सजेगी इसके मानक पुरुषों ने गड़े सेक्स और उसके साथ किस तरह का संबंध हो यह भी पुरुषों ने निर्मित किया एक पुस्तक में 15 अध्याय है पहले अध्याय में स्त्री साहित्य इतिहास मैं लिंग और स्त्री साहित्य की अवधारणा के विभिन्न पहलुओं का विशेषण है स्त्री साहित्य के इतिहास में व्यवस्थित ढंग से निर्मित करने के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण और द्वंदात्मक प्रणाली को आधार बनाया जाना चाहिए इससे स्त्री साहित्य की ऐतिहासिक चेतना एवं युगीन चेतना के रिश्ते और अंतराल को बढ़ाने में मदद मिलती है स्त्री साहित्य का इतिहास लिखने का अर्थ है स्त्री यथार्थ के जटिल रूपों के परिवर्तन की प्रक्रिया को जाना स्त्री साहित्य के बहुत स्त्री औरतों की खोज करना |
जगदीश्वर चतुर्वेदी मथुरा में 1997 में जन्म | आरंभ में 13 वर्षों तक सिद्धांत ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन | ज्योतिषशास्त्र पर आरंभ में दो पुस्तकें प्रकाशित | संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से सिद्धांत ज्योतिषाचार्य (1979), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से हिंदी में एम.ए. (1981), एमफिल, (1982), (आपातकालीन हिंदी कविता और नागार्जुन), पी. एच. डी. स्वातंत्रोत्तर हिंदी कविता की मार्क्सवादी समीक्षा का मूल्यांकन (1986), कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 1989 से 2016 तक अध्यापन कार्य, तीन बार विभाग अध्यक्ष | साहित्यालोचन और मीडिया पर 58 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित | कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सन 1989 में प्रवक्ता सन 1993 में रीडर और 2001 में प्रोफेसर पद पर नियुक्ति | सन सन 2016 में रिटायर | प्रकाशित कुछ प्रमुख पुस्तकें - उंबेतरो इको: चिन्हशास्त्र, साहित्य और मीडिया, (2012), मीडिया समग्र 11 खंडों में (2013), साहित्य का इतिहास दर्शन (2013), डिजिटल कैपिट लिजम, फेसबुक संस्कृति और मानवाधिकार (2014), इंटरनेट, साहित्य लोचन और जनतंत्र के (2014), नामवर सिंहऔर समीक्षा के सीमांत (2016), रामविलास शर्मा और परवर्ती पूंजीवाद और साहित्य इतिहास की समस्याएं , (2017) उत्तर आधुनिकतावाद (2004), तिब्बत दमन और मीडिया (2009), नदी ग्राम मीडिया और भूमंडलीकरण 2008 स्त्रीवादी साहित्य विमर्श (2000), मार्क्सवादी साहित्यालोचना की समस्यां, साइबर परिप्रेक्ष्य में हिंदी संस्कृत, उत्तर आधुनिकतावाद और विचारधारा, आधुनिकतावाद और विचारधारा, लेखक विश्व दृष्टि और संस्कृति |