शीतयुद्ध, साहित्य और मुक्तिबोध

Rs.850.00

9789383931057
HB
Academic Publication
जगदीश्वर चतुर्वेदी
23/36/16
2020

Description

मुक्तिबोध की रचनाओं में शीत युद्ध की राजनीति और उसके विभिन्न पहलुओं का बार-बार जिक्र आया है, लेकिन हिंदी आलोचना में कभी भी वे पहलू बहस के केंद्र में नहीं रहे , जबकि शीत युद्ध की राजनीति और उसके प्रभावों को लेकर हिंदी के मार्क्सवादी और लोकतांत्रिक आलोचक जानते हैं , वे यह भी जानते हैं कि शीतयुद्धीय राजनीति का मतलब क्या है , इसके बावजूद आलोचना में तकरीबन यह पहले एक सिरे से गायब है | मुक्तिबोध ने आगनेष्का सोनी को (29 मई 1963) एक पत्र में शीतयुद्धीय राजनीति के असर पर जो लिखा है वह बेहद जटिल और संशिलष्ट है उन्होंने लिखा, भय हां, मैंने इस शब्द का प्रयोग जानबूझकर किया है | मुझे आपके बारे में कुछ विशेष भय था- इसलिए मैं एक विषय पक्ष पर विशेष बल दे रहा था | और वह यह है | साम्यवादी देशों से पोलैंड साम्यवादी देश ही है किनहीं मतभेदों के आधार पर, निकले हुए या भागे हुए लोग, अथवा ऐसे ही अन्यान्य कारणों से हुए आए हुए हैं लोग बहुधा साम्यवाद-विरोधी शिविर में आ मिलते हैं | भारत में साम्यवाद विरोधी प्रतिक्रियाएं वादियों की संख्या कम नहीं हैं |

About Author

जगदीश्वर चतुर्वेदी

मथुरा में 1997 में जन्म | आरंभ में 13 वर्षों तक सिद्धांत ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन | ज्योतिषशास्त्र पर आरंभ में दो पुस्तकें प्रकाशित |संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से सिद्धांत ज्योतिषाचार्य (1979), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से हिंदी में एम.ए. (1981), एमफिल, (1982), (आपातकालीन हिंदी कविता और नागार्जुन), पी. एच. डी. स्वातंत्रोत्तर हिंदी कविता की मार्क्सवादी समीक्षा का मूल्यांकन (1986), कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 1989 से 2016 तक अध्यापन कार्य, तीन बार विभाग अध्यक्ष | साहित्यालोचन और मीडिया पर 58 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित | कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सन 1989 में प्रवक्ता सन 1993 में रीडर और 2001 में प्रोफेसर पद पर नियुक्ति | सन सन 2016 में रिटायर |

प्रकाशित कुछ प्रमुख पुस्तकें - उंबेतरो इको: चिन्हशास्त्र, साहित्य और मीडिया, (2012), मीडिया समग्र 11 खंडों में (2013), साहित्य का इतिहास दर्शन (2013), डिजिटल कैपिट लिजम, फेसबुक संस्कृति और मानवाधिकार (2014), इंटरनेट, साहित्य लोचन और जनतंत्र के (2014), नामवर सिंहऔर समीक्षा के सीमांत (2016), रामविलास शर्मा और परवर्ती पूंजीवाद और साहित्य इतिहास की समस्याएं , (2017) उत्तर आधुनिकतावाद (2004), तिब्बत दमन और मीडिया (2009), नदी ग्राम मीडिया और भूमंडलीकरण 2008 स्त्रीवादी साहित्य विमर्श (2000), मार्क्सवादी साहित्यालोचना की समस्यां, साइबर परिप्रेक्ष्य में हिंदी संस्कृत, उत्तर आधुनिकतावाद और विचारधारा, आधुनिकतावाद और विचारधारा, लेखक विश्व दृष्टि और संस्कृति |

Table of Content

  1. समाज आलोचना और मार्क्सवाद
  2. मानवाधिकार के ग्लोबल पैराडाइम के अंतविरोध
  3. पितृसत्ता के नए आयाम
  4. साहित्य की अवधारणा का मौजूदा स्वरूप
  5. शीत युद्ध की राजनीति और साहित्य
  6. शीतयुद्धीय राजनीति और तुलनात्मक साहित्य
  7. आलोचना की अवधारणा और पुनर्विचार
  8. मुक्तिबोध के पुनर्मूल्यांकन का नया परिप्रेक्ष्य
  9. अंधेरे में नामवर सिंह
  10. मुक्तिबोध फेंटेसी और आज के सवाल
  11. सीआईए, साहित्य और विचारधारा