आप जानते हैं कि कई किताबें समय के लंबे अंतरालो को चीरती हुई आपके दिल और दिमाग में हमेशा बनी रहती है | आपने और मैंने भी देखा है काल- खंडों को काटती हुई कई रचना- पीढ़ियों के पाठको को ऐसी पुस्तकों से जुड़ते, उद्वेलित और प्रेरित होते | मेरी किताबें भी आपके सामने आती जाती रही हैं और उनमें से कई पुस्तकें हैं जिन्हें आप आज तक सहेजे हुए हैं जैसे विभाजन पर मेरा काम, कविताएं, आत्मकथाएं, डायरिया , और 'मंटो जिंदा है' जैसी जीवनी | लंबी कविताओं पर मेरे काम को खासतौर पर 'लंबी कविताओं का रचना विधान' जैसी पुस्तक आपके अवचेतन का ही नहीं, कवियों और भारतीय भाषाओं के पाठकों का भी हिस्सा बनी रही है |आप जानते हैं कि कुछ लोगों ने इसे व्यवहारिक दस्तावेज कहा और कई अन्य ने इसे काव्यालोचना में एक जरूरी और वाजिब हस्तक्षेप कहा था | इस पुस्तक के आने से कुछ ऐसी हवा चली कि हर कवि को लगा कि वह एक लंबी कविता जरूर लिखे | इससे प्रगीत और छोटी कविता को लेकर पली ढली आलोचकों की आदतों में बदलाव आया जिससे काव्यालोचना का दायरा विस्तृत हुआ |
कवि नाटककार और आलोचक के रूप में सुविख्यात डॉ. नरेंद्र मोहन का जन्म 30 जुलाई , 1935 लाहौर|हिंदी विभाग दि.वि. साहित्य का अध्यापन ! सन 2000 में सेवानिवृत्त | भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय औरंगाबाद, गोवा विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर | अपने कविता-संग्रह : इस हादसे में होने से (1975), सामना होने पर (1979), एक अग्निकांड जगहे बदलता (1983), हथेली पर अंगारे की तरह (1990), संकट दृश्य का नहीं (1993), एक खिड़की खुली है अभी (2006), नीले घोड़े का सवार (2008), रंग आकाश में शब्द (2010), शर्मिला इरोम तथा अन्य कविताएं (2014), रंग दे शब्द (2015), नृत्य से कविता (2016), द्वारा वे नए अंदाज में कविता की परिकल्पना करते रहे हैं l अपने नाटकों -कहै कबीर सुनो भाई साधो (1988), सिंगधारी (1988), कलंदर (1991), नो मैंस लैंड (1994), अभंग- गाथा (2000), मि. जिन्ना (2005), हद हो गई यारों (2009), मंच अंधेरे में (2010), और मालिक अकबर (2012), में वे हर बार नई वस्तु और रंग-दृष्टि की तलाश करते दिखते हैं l नई रंगत में ढली उनकी डायरियो-साथ-साथ मेरा साया (2002), से अलग (2010), और डर और साहस के बीच (2018), फ्रेम से बाहर आती तस्वीरें (संस्मरण , 2010) मंटो जिंदा है ( जीवनी, 2012), कमबखत निंदर (आत्मकथा 2013), और क्या हाल सुनावा (आत्मकथा, 2015), ने इस विधाओं को नए मायने दिए हैं l 12 खंडों में नरेंद्र मोहन रचना वाले और दो खंडों में संपूर्ण कविताएं प्रकाशित हो चुकी है l विचार कविता और 'लंबी कविता' के विमर्श के जरिए उन्होंने सृजन और चिंतन के नए आधारों की खोज की है l उनके नाटक, आत्मकथाएं, जीवनी और कविताएं विभिन्न भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनूदित हो चुकी है | वे कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार है |