बीसवीं शताब्दी में लंबी कविता का माध्यम आधुनिक युग की एक जरूरत के तौर पर उभरा है | इस जरूरत का एहसास शताब्दी के शुरू में ही हो गया था | आधुनिकता के दबाव से जैसे-जैसे मूल्यगत का संक्रमण की प्रक्रिया तेज होती गयी और सामाजिक ढांचे में तबदीली का आभास होता गया, वैसे वैसे कविता के चरित्र में कविता रचने के प्रकारों में रूप विधान और संरचना में परिवर्तन आने लगे | लंबी कविताओं को एक जरूरी काव्य माध्यम के तौर पर उभर आने में संदेह नहीं रह जाता | प्रारंभ से आज तक लंबी कविताओं के विकास क्रम को सामाजिक स्थितियों के संदर्भ में देखने से कुछ रोचक तथ्यों एवं निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है | एक लंबी कालाविध में लंबी कविता ने अपने आंतरिक शक्ति के बल पर विशिष्ट और महत्वपूर्ण कविता के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की है एक अलग तरह के इस चुनौतीपूर्ण काव्य माध्यम को कवियों पाठकों और आलोचकों द्वारा स्वीकृति मिल मिली है जिससे लंबी कविता आज रचना और आलोचना के केंद्र में आ गई है |
कवि नाटककार और आलोचक के रूप में सुविख्यात डॉ. नरेंद्र मोहन का जन्म 30 जुलाई , 1935 लाहौर| हिंदी विभाग दि.वि. साहित्य का अध्यापन ! सन 2000 में सेवानिवृत्त | भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय औरंगाबाद, गोवा विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर | अपने कविता-संग्रह : इस हादसे में होने से (1975), सामना होने पर (1979), एक अग्निकांड जगहे बदलता (1983), हथेली पर अंगारे की तरह (1990), संकट दृश्य का नहीं (1993), एक खिड़की खुली है अभी (2006), नीले घोड़े का सवार (2008), रंग आकाश में शब्द (2010), शर्मिला इरोम तथा अन्य कविताएं (2014), रंग दे शब्द (2015), नृत्य से कविता (2016), द्वारा वे नए अंदाज में कविता की परिकल्पना करते रहे हैं l अपने नाटकों -कहै कबीर सुनो भाई साधो (1988), सिंगधारी (1988), कलंदर (1991), नो मैंस लैंड (1994), अभंग- गाथा (2000), मि. जिन्ना (2005), हद हो गई यारों (2009), मंच अंधेरे में (2010), और मालिक अकबर (2012), में वे हर बार नई वस्तु और रंग-दृष्टि की तलाश करते दिखते हैं l नई रंगत में ढली उनकी डायरियो-साथ-साथ मेरा साया (2002), से अलग (2010), और डर और साहस के बीच (2018), फ्रेम से बाहर आती तस्वीरें (संस्मरण , 2010) मंटो जिंदा है ( जीवनी, 2012), कमबखत निंदर (आत्मकथा 2013), और क्या हाल सुनावा (आत्मकथा, 2015), ने इस विधाओं को नए मायने दिए हैं l 12 खंडों में नरेंद्र मोहन रचना वाले और दो खंडों में संपूर्ण कविताएं प्रकाशित हो चुकी है l विचार कविता और 'लंबी कविता' के विमर्श के जरिए उन्होंने सृजन और चिंतन के नए आधारों की खोज की है l उनके नाटक, आत्मकथाएं, जीवनी और कविताएं विभिन्न भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनूदित हो चुकी है | वे कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार है |
प्रलय की छाया :जयशंकर प्रसाद
राम की शक्ति पूजा : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
परिवर्तन : सुमित्रानंदन पंत
असाध्य वीणा : अज्ञेय
हरिजन गाथा : नागार्जुन
अंधेरे में : गजानन माधव मुक्तिबोध
शब्दों के तल्प पर : भवानी प्रसाद मिश्र
इतिहास के जराहों से : गिरिजाकुमार माथुर
चिरफाड़ : भारतभूषण अग्रवाल
फिर वही लोग : राम दशरथ मिश्र
अलविदा : विजयदेव नारायण साही
प्रमथ्यु गाथा : धर्मवीर भारती
कुआनो नदी : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
आत्महत्या के विरुद्ध : रघुवीर सहाय
मुक्ति प्रसंग : राजकमल चौधरी
अतीत से गुजरते हुए : जगदीश चतुर्वेदी
एक अग्निकांड जगह बदलता : नरेंद्र मोहन
टुंडे आदमी का बयान : बसंत कुमार परिहार
पटकथा : धूमिल
यात्रा के बीच : विनय
उपनगर में वापसी : बलदेव वंशी
उनके 19 वें जन्मदिन पर : सुमन राजे
लुकमान अली : सौमित्र मोहन
क्रागुएवात्स मैं पूरे स्कूल के साथ : सोम दत्त
समृति की खोह में : गंगा प्रसाद विमल
संवादगाथा : मोहन सपरा
घास का घराना : मणि मधुकर
गुजरते हुए : सादिक
बयान- बाहर : सुखबीर सिंह
बलदेव खटीक : लीलाधर जगूड़ी
सवाल अब भी मौजूद है : प्रताप सहगल
परिशिष्ट : अन्य लंबी कविताएं
कवि- परिचय