कोई भी कला या रचना एक कलाकार या रचनाकार की होने के बावजूद केवल उस तक सीमित नहीं रह सकती क्योंकि अनंत वह आत्मा और परिवेश के योगम की ही अभिव्यक्ति होती है पाठक आलोचक उस रचना के भीतर रचे बसे मूल्यों मापदंडों को खंगालते हुए रचना और समकालीन परिदृश्य रचनाकार और उसकी दृष्टि की पहचान करता है पहचान का यह सिलसिला अनवरत अनेक आयामी और विविधता पूर्ण है क्योंकि दृश्य एक होने के बावजूद दृष्टि भिन्न होती है दृश्य और दृष्टि का संयोजन रचना और आलोचना में यह प्रवृत्ति खास तौर पर देखी जा सकती है |
रचना और आलोचना आलोचना रचनाकार और आलोचक के परस्पर संबंध और दृष्टि विषयक वाद-विवाद के बावजूद अच्छी रचना का स्वागत निष्पक्ष आलोचक गर्मजोशी के साथ करता है और एक स्वस्थ आलोचना को साहित्य समाज के साथ स्वयं रचनाकार भी रहता है अगर लेखककीय कर्म को किसी रचना के सर्जक के तौर पर स्वीकारना है तो बहुत चर्चित एवं अल्प चर्चित मुख्य गों विधा कहकर एक को दूसरे से कमतर आंकने और जांचने की प्रवृत्ति से बचना ही होगा |
डॉ रजनी बाला
जन्म : 3 जनवरी 1966
शिक्षा : एम.फिल., पी-एच.डी., दिल्ली विश्वविद्यालय
रचना- कर्म : अज्ञेय : चिंतन और काव्य (आलोचना) 2002
अज्ञेय :एक कृति के बहाने (आलोचना) 2004
नरेंद्र मोहन : लंबी कविताओं के बहाने (आलोचना) 2006
स्मृति के साथ (संस्मरण संपादन) 2010
लंबी कविता : नए संदर्भ (आलोचना) 2012
लंबी कविता : व्यापक संदर्भ (आलोचना) 2017
दृश्य और दृष्टि का संयोजन : रचना और आलोचना (आलोचना) 2021
लगभग 40 आलेख एवं अनेक कविताएँ विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं संपादित पुस्तकों में प्रकाशित |
विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में भागीदारी और आलेख- पाठ |
साहित्यिक आलोचना एवं कविता लेखन में रुचि |
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वृहद शोध परियोजना के अंतर्गत भारतीय लंबी कविताएं हिंदी डोगरी मराठी के विशेष संदर्भ में कार्य संपन्न 2012 |
संप्रति : अध्यक्ष हिंदी विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू |
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संदर्भित पुस्तके