दृश्य और दृष्टि का संयोजन

Rs.695.00

9788195402137
HB
Academic Publication
रजनी बाला
23/36/16
166
2021

Description

कोई भी कला या रचना एक कलाकार या रचनाकार की होने के बावजूद केवल उस तक सीमित नहीं रह सकती क्योंकि अनंत वह आत्मा और परिवेश के योगम की ही अभिव्यक्ति होती है पाठक आलोचक उस रचना के भीतर रचे बसे मूल्यों मापदंडों को खंगालते हुए रचना और समकालीन परिदृश्य रचनाकार और उसकी दृष्टि की पहचान करता है पहचान का यह सिलसिला अनवरत अनेक आयामी और विविधता पूर्ण है क्योंकि दृश्य एक होने के बावजूद दृष्टि भिन्न होती है दृश्य और दृष्टि का संयोजन रचना और आलोचना में यह प्रवृत्ति खास तौर पर देखी जा सकती है |

रचना और आलोचना आलोचना रचनाकार और आलोचक के परस्पर संबंध और दृष्टि विषयक वाद-विवाद के बावजूद अच्छी रचना का स्वागत निष्पक्ष आलोचक गर्मजोशी के साथ करता है और एक स्वस्थ आलोचना को साहित्य समाज के साथ स्वयं रचनाकार भी रहता है अगर लेखककीय कर्म को किसी रचना के सर्जक के तौर पर स्वीकारना है तो बहुत चर्चित एवं अल्प चर्चित मुख्य गों विधा कहकर एक को दूसरे से कमतर आंकने और जांचने की प्रवृत्ति से बचना ही होगा |

About Author

डॉ रजनी बाला

जन्म : 3 जनवरी 1966

शिक्षा : एम.फिल., पी-एच.डी., दिल्ली विश्वविद्यालय

रचना- कर्म : अज्ञेय : चिंतन और काव्य (आलोचना) 2002

                  अज्ञेय :एक कृति के बहाने (आलोचना) 2004

                  नरेंद्र मोहन : लंबी कविताओं के बहाने (आलोचना) 2006

                  स्मृति के साथ (संस्मरण संपादन) 2010

                  लंबी कविता : नए संदर्भ (आलोचना) 2012

                  लंबी कविता : व्यापक संदर्भ (आलोचना) 2017

                  दृश्य और दृष्टि का संयोजन : रचना और आलोचना (आलोचना) 2021

                  लगभग 40 आलेख एवं अनेक कविताएँ विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं संपादित पुस्तकों में प्रकाशित |

                  विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में भागीदारी और आलेख- पाठ |

                  साहित्यिक आलोचना एवं कविता लेखन में रुचि |

                  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वृहद शोध परियोजना के अंतर्गत भारतीय लंबी कविताएं हिंदी डोगरी मराठी के विशेष संदर्भ में कार्य संपन्न 2012  |

                 संप्रति : अध्यक्ष हिंदी विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू |

Table of Content

अपनी बात

दृश्य और दृष्टि

  • विभ्रम  और  यथार्थ : स्त्री विमर्श का   अंतपाठ
  • सूचना प्रौद्योगिक, साहित्य एवं कलाओं का अंतर संबंध
  • आधुनिक तकनीक और लोक साहित्य का संयोजन
  • विकलांगता दृश्य और दृष्टिकोण
  • दलित सरोकार एक चीख भरी चुप
  • हिंदी कितनी अपने कितनी परायी

रचना और आलोचना

  • ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक किरदार मंटो
  • अपने दौर के सवालों से सामना करता प्रियकांत
  • डायरी में सिसकियाँ लेता स्वर्ग
  • सार्थक आधारों वाली रंगानुभूति
  • नाट्यालोचना की नई दिशाएं
  • कवि कर्म की एक लंबी पारी
  • बहुआवर्ती काव्यात्मक सौंदर्य
  • आत्मा और परिवेश की काव्यात्मक अभिव्यक्ति
  • दहकते एहसास से उपजी कविता

संदर्भित पुस्तके